उपसंहार


 जब मैं इन दोनों कवियों के समान पहलुओं को खोजने लगा, देखते ही देखते

मेरी आंखों के सामने कई नाम उजागर हो गए। जैसे पिता, ईश्वर, आदिवासी,

मित्र, प्रेम, कविता, समय, शब्द, अनुवाद आदि ऐसे विषय मिल गए कि दोनों

कवियों को आत्मसात कर एक कॉमन प्लैटफार्म पर लाने का मेरा कार्य शुरू

हो गया। दोनों कवियों की कविताओं में मुझे काफी हद तक समानता नजर

आई, मेरे संपूर्ण शोध में मुझे कहीं - कहीं तो ऐसा लगने लगा मानो सीताकांत

महापात्र सुधीर सक्सेना की कविताओं में बोल रहे हो तो कभी-कभी सुधीर

सक्सेना सीताकांत महापात्र बनकर अपनी कविताओं का वाचन कर रहे हो।

यह तुलनात्मक अध्ययन मेरी आलोचनात्मक एवं गवेषणात्मक दृष्टि में अत्यंत

ही उल्लेखनीय बन पड़ा है। जो हिंदी के पाठक सीताकांत महापात्र जी को नहीं

जानते हों, वे कम से कम इस आलोचना पुस्तक के जरिए उन्हें जान सकेंगे।

उसी तरह सुधीर सक्सेना जी की कविताओं का पाठक वर्ग विपुल होने के बाद

भी उनकी कविताओं का समग्र विश्लेषण अगर आपको एक जगह प्राप्त हो

जाता है तो वह सोने पर सुहागा से कम नहीं है।

 

 

                         संदर्भ ग्रंथ

 

 

सीताकांत जी की अंग्रेजी पुस्तकें :-

 

1. NewHorizon ofHuman Progress.:Dr.Sitakant

Mahapatra

2. Discovering The Inscape : Essay on Literature.:Dr.

Sitakant Mahapatra

3. Beyond the word : Multiple Gestures of       Tradition. :Dr. Sitakant Mahapatra

4. The Alphabet of Birds ( Translated by : Dr. Sitakant Mahapatra

5. Achild even in Arms of Stone (Compiled by) Dr.

Sitakant Mahapatra

6. Hinterland of Creativity, Essay and lecture : Dr.

Sitakant Mahapatra

7. Landscape of Indian Literature :Voice sand   Vision: Dr. Sitakant Mahapatra

8. Bringing them to school : Primary Education for Tribal

Children : Dr. Sitakant Mahapatra

सीताकांत जी की ओड़िया पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद :-

9. अनेक शरत (यात्रा-संस्मरण) (अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित)

10. हथेली में इंद्रधनुष (कविता संग्रह) (अनुवाद : सुजाता शिवेन)

11. वर्षा की सुबह (कविता संग्रह) (अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र)

12. तीस कविता वर्ष (कविता संग्रह)

 

 

 

..

13. झरते हैं तारे जिस माटी पर (कविता-संग्रह) (अनुवाद : राजेन्द्र

प्रसाद मिश्र)

14. पूछे किससे कहो (अनुवाद : महेन्द्र शर्मा)

15. फिर कभी आना (अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र)

16. कपट पासा (अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र)

17. पदचिह्न (अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र)

18. असफल आरोप (अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र)

19. ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएं ( अनुवाद : दिनेश कुमार

माली)

20. स्मृतियों में हार्वार्ड (यात्रा-संस्मरण) (अनुवाद : दिनेश कुमार माली)

सुधीर सक्सेना की पुस्तकें

21. किताबें दीवार नहीं होती (कविता-संग्रह)

22. एक सौ ग्यारह कविताएं (कविता-संग्रह)

23. शब्दों के संग रूबरू (कविता-संग्रह)

24. अर्द्धरात्रि है यह (लंबी कविता)

25. समरकंद में बाबर (कविता-संग्रह)

26. गुंडाधूर (बस्तर पर आधारित ऐतिहासिक पुस्तक)

27. गोविंद की गति गोविंद जाने... (गोविंद सेठ की जीवनी)

28. बहुत दिनों के बाद (कविता-संग्रह)

29. काल को भी नहीं पता (कविता-संग्रह)

30. राज जब चंद्रमा बजाता है बांसुरी (कविता-संग्रह)

31. किरच-किरच यकीन (कविता-संग्रह)

32. ईश्वर हां, नहीं तो... (कविता-संग्रह)

32. कुछ भी नहीं अंतिम (कविता-संग्रह)

33. बीसवीं सदी, इक्कीसवीं सदी (लंबी कविता)

34. धूसर में बिलासपुर (लंबी कविता)

35. मध्य प्रदेश में आजादी की लड़ाई और आदिवासी

36. भुमकाल

37. गुंडा धूर : युयुत्सु महानायक

38. ऐसे आये गांधी

39. बस्तर का भूचाल

40. कभी छीने काल (अनुवाद)

41. स्मृति गाथा (अनुवाद)

42. एक अव्वल चमत्कार (अनुवाद)

सुधीर सक्सेना पर आलोचना पुस्तकें :

43. प्रतिरोध का वैश्विक स्थापत्य (उमाशंकर सिंह परमार)

44. कविता ने जिसे चुना (संपादक : यशस्विनी पांडेय)

45. जैसे धूप में घना साया (संपादक : रईस अहमद 'लाली')

46. शर्म की सी शर्त नामंजूर (संपादक : ओम भारती)

अन्य पुस्तकें

47. नीत्शे : जरथुष्ट्र ने कहा (प्रस्तुति : मुद्राराक्षस)

48. अल्बेयर कामू : वह पहला आदमी (प्रस्तुति : प्रभा खेतान)

49. शहर-दर-शहर उमड़ती है नदी (संस्मरण : लेखक : उद्भांत)

50. नक्सल (उपन्यास : लेखक : उद्धांत)

 

 

 

 

 

  

                           राजेश बादल

 

                  एकनूर ते सब जग उपज्या

 

 

 

मिली हो रूह तो जिस्मों की बंदिशें क्या है। बदन तो

खाक ही होने हैं रंजिशें क्या है।

कमाल है! रूहानियत के लोक में विचरण कराने वाले दो

अद्भुत व्यक्तित्व। सैकड़ों किलोमीटर का दैहिक फासला।

अलग-अलग हालात। सोच के स्तर में दोनों के बीच

विलक्षण समानता। दिल की गहराइयों में उतर जाने वाले

शब्द और भाव। सपनों की उड़ान को आसमानी ऊंचाइयों

तक ले जाते डॉक्टर सुधीर सक्सेना और डॉक्टर सीताकान्त

महापात्र दो कवि : एक दृष्टि। जीवन के एक सत्य की तरह।

हिन्दी साहित्य-प्रेमियों के लिए यह पुस्तक एक नायाब

कोहिनूर जैसा तोहफ़ा है। एक बार हाथ में आयी, तो आखिरी

शब्द तक घोंट कर पी जाने को जी चाहता रहा।

सुधीर और सीताकांतजी दोनों ही यायावर, फक्कड़ और

कुछ-कुछ फ़क़ीर। दुनिया के तमाम मुल्कों को अपने क़दमों

से नापने वाले। दोनों के ही क़द को नापना कठिन। दोनों सधे

हुए कदमों से दुनिया छोटी होती गयी, उनका क़द बड़ा होता

गया। हमें पता भी चला और एक दिन अचानक जैसे

सुधीर ने चौंका दिया। उनका विराट आकार चकाचौंध कर

रहा था और उधर ओड़िशा का आकाश समाया हुआ था

सीताकांतजी के आगोश में। कुछ-कुछ गुरुदेव और

गीतांजलि की तरह। समूचे विश्व ने गीतांजलि को माथा टेका

और देखते -ही-देखते हमारे गुरुदेव पर चारों दिशाएं मर

मिटीं। इन दोनों रचनाकारों के साथ भी यही हुआ। हमारी

मुट्ठी से फिसलकर कब अदब के अंतरिक्ष में जा बैठे- हमें

भनक तक लगी। अब यह पुस्तक आपके हाथों में है तो दो

सितारों की चमक सारा विश्व देख रहा है।

सवाल यह है कि भारत में दशकों से इस तरह का लेखन क्यों

नहीं हो रहा था?

तो मेरा विनम्र उत्तर है कि संवेदना के अलग-अलग स्तर

समेटे साहित्य की रचना तो खूब हुई, लेकिन वह अपनी

वैयक्तिक कक्षा में चक्कर लगाता रहा। अपनी कक्षा का

चुंबकीय क्षेत्र पार कर समग्र मानवता के अंतरिक्ष में कदम

रखने का साहस वह लेखन नहीं जुटा पाया। सौर मंडल में

हजारों गुमनाम उल्का पिंडों की तरह वह साहित्य निर्विकार

यात्रा करता रहा।सुधीर सक्सेना और सीताकांत महापात्र इस

 

मायने में सूर्य-रश्मियों के रथ पर आकर अपनी उपस्थिति

का अहसास कराते हैं। अब यह सुधी पाठकों पर निर्भर है कि

अपने आपको किस तरह आलोकित करते हैं।

सुधीर प्रेम के कवि है। उसके तमाम रूपों को अपने रचना

संसार में स्थान देते है। प्रेम के भाव को अलग करके सुधीर

को नहीं देखा जा सकता। यह प्रेम उदात है। खुला-खुला-

सा। निर्मल झरने की मानिंद बहता हुआ। उड़ते परिंदों की

तरह। एक बच्चे की खिलखिलाहट की तरह भटकते बंजारे

की तरह। गोधूलि बेला में लौटते चौपायों के गले में लटकते

सूखे गुटके से निकलते रसीले वाद्यवृन्द की तरह। तड़के

टपकते हुए महुए की गंध की तरह उन्मुक्त अभिसार के बाद

देहों से रिसती भीनी-भीनी गंध की तरह। आत्मा और

परमात्मा के मिलन की तरह। यह प्रेम ही तो उनकी कलम से

झरता है। पिता की याद हो या परमेश्वर की। प्रकृति की याद

हो या मित्रों की। समय की याद हो या सरोकार की। यही प्रेम

सुधीर का मूल तत्व है। कविता में तो है ही, गद्य में भी यह

विभिन्न रूपों में नज़र आता है। उनका सैलानी साहित्य पढ़ें

या सम-सामयिक विषयों पर पत्रकारिता की भाषा, चुंबक

की तरह जोड़ता हुआ यह प्रेम उपस्थित है। सचमुच लासानी

है सुधीर का लेखन।

सीताकांतजी की क्या बात करूं? अद्भुत घुमक्कड़ी लेखन।

कविताओं में प्रतीकों के जरिए बिंब-रचना में माहिर ललित

निबंध शैली आज के हिन्दी साहित्य से विलुप्त होती विधा है।

जब सीताकांतजी ने अपने अहसास के जरिए इसे संप्रेषित

किया, तो यह साहित्य संसार का एक अनमोल दस्तावेज़ बन

गया। भले ही, उन्होंने अंग्रेजी में भी लिखा, लेकिन वे

ओड़िया के विश्व राजदूत हैं।

इस टिप्पणी को मैं परम्परागत शैली में लेखकीय उद्धरणों या

उनके कथनों से संपन्न नहीं करना चाहता। मुझे नीरज की ये

पंक्तियां याद रही हैं-

भाई! यह दर्शन संत महंतों का है बस तुम दुनिया वाले

हो दुनिया से प्यार करो।

जो सत्य तुम्हारे सम्मुख भूखा-नंगा है उसके गाओ गीत

उसे स्वीकार करो।।

यह बात कही जिसने उसको मालूम था वह समय

रहा है कि मरेगा जब ईश्वर।

होगी मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठित मानव की ' ज्ञान ब्रह्म को

नहीं मनुज को देगा स्वर।

आज के दौर में इन दोनों कवियों का जीवन-दर्शन कितना

प्रासंगिक है? फैसला आपको करना है, मगर दिनेश कुमार

माली ने सहोदरा भाषाओं के वैश्विक दृष्टि के दो कवियों के

रचना-संसार में सफलतापूर्वक पैठ कर एक ऐसा सार्थक,

बड़ा और सराहनीय उपक्रम किया है, जो दस्तावेजी होने के

साथ-साथ अनुकरणीय भी बन पड़ा है। मुझे विश्वास है कि

इस कृति का वृहत्तर साहित्य-लोक में स्वागत होगा।

 

संपर्क : 9910068399

ईमेल : rstv.rajeshbadal@gmail.com

 

 

 

 


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